जब से चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ है, देशवासियों के मन में यह जानने की उत्सुकता है कि अपना यान कहां तक पहुंचा। आज रात एक बड़ा और महत्वपूर्ण पड़ाव पूरा कर अपना यान चांद की तरफ बढ़ने वाला है। जी हां, आज रात चंद्रयान धरती की कक्षा से निकलकर चांद की तरफ जाएगा।
नई दिल्ली: आज आधी रात को जब हम गहरी नींद में सो रहे होंगे, अपना चंद्रयान-3 धरती की कक्षा से निकलकर चांद की तरफ बढ़ चलेगा। जी हां, 1 अगस्त को 12 am से 1 am के बीच इसरो अपने यान को सफर पर आगे भेजेगा। चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने से महज 6 दिन दूर है। आज आधी रात जो मैनुअर यानी प्रक्रिया पूरी की जाएगी, वह 28 से 31 मिनट का वक्त लेगी। सही समय और दूरी देखकर स्पेसक्राफ्ट में लगे थ्रस्टर्स को फायर किया जाएगा। इस समय चंद्रयान-3 धरती की दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमा कर रहा है और इसकी स्पीड एक किमी प्रति सेकेंड और 10.3 किमी प्रति सेकेंड के बीच है। आगे बढ़ने के लिए स्पेसक्राफ्ट को तेज वेलॉसिटी की जरूरत होगी।
दरअसल, परिक्रमा करते समय किसी भी उपग्रह या यान की दो महत्वपूर्ण दशाएं होती हैं। एक ऐसा पॉइंट (Perigee) जब यान पृथ्वी से काफी करीब होता है और दूसरा पॉइंट (Apogee) जब वह धरती से सबसे दूर होता है। पेरिगी पर वेग सबसे ज्यादा (10.3 किमी प्रति सेकेंड) होता है और एपोगी पर सबसे कम। नए पाथ पर जाने के लिए वेलॉसिटी सबसे ज्यादा चाहिए होगी। चांद की तरफ जाने के लिए इसके ऐंगल को भी बदलना होगा।
आज रात क्या होगा, पूरी प्रक्रिया समझिए
पहले से तय है कि थ्रस्टर्स के फायर होने से करीब 5-6 घंटे पहले यान का मार्ग बदलने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। दिशा बदलने में हेल्प करने के साथ ही थ्रस्टर्स से यान की वेलॉसिटी बढ़ा दी जाएगी। बाद में चंद्रयान-3 की वेलॉसिटी पेरिगी पर 0.5 किमी प्रति सेकेंड बढ़ने की संभावना है। यान को 1.2 लाख किमी की दूरी तय करने में औसतन 51 घंटे लगेंगे। वैसे धरती और चांद के बीच औसत दूरी 3.8 लाख किमी है लेकिन किसी निश्चित दिन वास्तविक दूरी धरती और चांद की पोजिशन के आधार पर बदल सकती है।
यह दूरी 3.6 लाख किमी से लेकर 4 लाख किमी के बीच हो सकती है। चांद की कक्षा में पहुंचना मिशन का एक हिस्सा है। इसरो 2008 में ही चंद्रयान-1 सैटलाइट वहां पहुंचा चुका है और 2019 में चंद्रयान-2 गया था। इस बार चंद्रयान-3 चांद पर उतरने जा रहा है। पिछली बार क्रैश लैंडिंग हुई थी।
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद इसरो को कई मैनुअर करने होंगे। स्पेसक्राफ्ट को 100 किमी की ऊंचाई पर ले जाकर लैंडिंग मॉड्यूल को अलग किया जाएगा। वह तारीख होगी 17 अगस्त और 23 अगस्त को भारत का यान चांद को चूमने के लिए आगे बढ़ेगा।
