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जानें कैसे हुआ आठ बड़े टापुओं के देश जापान का जन्म, अद्भुत हैं जापान की पौराणिक कथाएं

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जापान की कथाएं आश्चर्य, रहस्य, वीरता और वैचित्र्य आदि भावों से भरी हुई हैं. कथाओं के माध्यम से बताया गया है कि आकाश, धरती, पाताल, वायु, अग्नि और सूरज का जन्म कैसे हुआ है. मानव का जन्म कैसे हुआ, चंद्रमा में शीतल रोशनी कैसे आई. इस प्रकार के तमाम प्रश्नों के उत्तर जापानी पौराणिक साहित्य में मिलते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जापान का जन्म इजानागि और इजानामि द्वारा किया गया है.

साहित्य अकादमी से जापान की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी कथाओं का एक संग्रह “जापान की कथाएं” प्रकाशित हुआ है. इस संग्रह में जापान के प्रसिद्ध लेखक साइजी माकिनो की लिखी हुई प्रचलित कथा-कहानियां हैं. प्रस्तुत है इस संग्रह की एक कहानी- जापान के जन्म की कथा

वह आकाश और पाताल की शुरुआत का समय था. आकाश से भी ऊपर ‘तोकाआमाहारा’ नामक स्थान पर विश्व के स्रष्टा का निवास था. उसी समय ‘अमेनोमिनाकानुसि’ नामक एक देवता था. वह सब जगह रहता था, चाहे वह जगह छोटी हो या बड़ी या फिर चाहे साफ हो या गंदी. अमेनोमिनाकानुसि ने अनेक देवी-देवताओं को जन्म दिया. उन्हीं में ‘इजानागि’ और ‘इजानामि’ भी थे.

एक दिन अमेनोमिनाकानुसि ने इजानागि और इजानामि को अपने पास बुलाकर आदेश दिया, “मैं दुनिया की सारी वस्तुएं बनाने को पूरी तरह तैयार हो गया हूं, इसलिए तुम जाओ और एक नये देश का निर्माण करके उसे बसाओ.” इतना कहकर उसने उन्हें ‘अमेनोहोको’ नामक हथियार दिया. दोनों ने वह हथियार ले लिया और बादल पर बैठकर प्रस्थान किया.

मार्ग में एक विशाल पक्षी उन्हें निगलने के लिए प्रकट हुआ. यह देखकर इजानागि ने हथियार घुमाया. इससे बादल हट गया और एक सुंदर पुल निकला. इजानागि ने इजानामि का हाथ पकड़ा और पुल पर उतर गया. उन्होंने पुल से नीचे देखा. लेकिन वहां कुछ भी दिखाई नहीं दिया. इजानागि ने फिर वही हथियार घुमाया, तो नीचे से एक मधुर आवाज सुनाई दी. इजानागि ने हथियार ऊपर उठाया. वह नमकीन पानी से भीगा हुआ था और उससे बूँदें टपक रही थीं.

अकस्मात् कुहरा समाप्त हो गया. इजानागि और इजानामि ने देखा कि जहां नमकीन पानी की बूँदें टपक रही थीं, वहां एक टापू बन गया है. दोनों उस टापू पर उतर गए. वहां ‘आमेनोमिहासिरा’ नामक एक खम्भा था. इजानागि उसके बाईं ओर गया और इजानामि दाईं ओर. इस प्रकार दोनों मिल गए और प्रेम के साथ हाथ मिलाकर उसी जगह पर सो गए.

जब सुबह हुई तो दोनों ने देखा कि सूर्योदय के साथ ही यहां एक सुन्दर टापू बन गया है. वे बहुत खुश हुए और उस नए टापू पर चले गए. उन्होंने उसे ‘आवाजि’ नाम दिया. ये उस टापू के पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखने लगे. उन्होंने देखा कि जहां दूर समुद्र में हिलोरे उठ रही थीं, वहां चार टापुओं का जन्म हुआ. ये टापू पहले से बड़े थे. उन्हें ‘सिकोकु’ नाम दिया गया. ये दोनों सिकोकु के सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चारों ओर देखने लगे, तो ‘ओकि’ और ‘क्यूश्यू नामक टापुओं का जन्म हुआ. उसके पश्चात ‘इकि’, ‘ल्युसिमा’ और ‘सादो’ नामक टापू जन्मे. अन्त में सबसे बड़े टापू ‘हॉश्यू’ (Honshu) का जन्म हुआ. इन सबको मिलाकर ‘ओओयासिमा’ नामक देश बना. ओओयासिमा अर्थात् आठ बड़े टापुओं का देश यही आज का जापान है.

टापुओं के इस देश के जन्म के पश्चात् उस पर शासन करनेवाले पैंतीस देवी-देवताओं का जन्म हुआ और उनका पालन-पोषण करने के लिए अनेक वस्तुएं बनीं. इन वस्तुओं को इजानामि ने उत्पन्न किया था.

एक दिन इजानामि की मृत्यु हो गई. इजानागि अपनी देवी पत्नी की मृत्यु से शोकाकुल हो गया. उसने इजानामि का पीछा किया और दौड़ते-दौड़ते देवी की दुनिया में प्रवेश कर गया. उसने वहां पहुँचकर देखा कि उस मृत्यु-देश में सड़े हुए शव हैं और बहुत-सी राक्षसिनियाँ बैठी हैं.

इजानागि ने उस मृत्यु-देश में अपनी पत्नी से विदा ली और ओओयासिमा (जापान) वापस लौट आया. उसने अपनी छड़ी नदी के किनारे खड़ी कर दी तथा पवित्र नदी में स्नान किया. उस छड़ी से एक देवता जन्मा. इजानागि ने अपने शरीर के वस्त्र एक-एक करके फेंक दिए. उनमें से एक-एक देवता का जन्म हुआ. संध्या होने पर वह नदी से समुद्र में गया और स्नान करने लगा. वहां समुद्र की रक्षा करनेवाले देवता का जन्म हुआ. स्नान के बाद इजानागि रात भर के लिए गहरी नींद में सो गया.

दूसरे दिन फिर समुद्र में स्नान करने गया और तन-मन से पवित्र हुआ. उसने जब दाएं हाथ से दाईं आँख धोई तो ‘आमातेरासु’ नामक महादेवी का जन्म हुआ. दुनिया की सच्चाई को ‘आमेनोमिनाकानुसि’ कहा जाता है. उसी सच्चाई के आदेश के अनुसार देश का निर्माण करने वाले इजानागि के पवित्र स्नान से देश पवित्र हुआ और ‘आमातेरासु’ महादेवी का जन्म हुआ. अंधकार मिटानेवाले सूर्योदय के समान ही आमेनोमिनाकानुसि का अवतार आमातेरासु महादेवी थी. उसी समय आकाशवाणी हुई- “तुम सूर्य अवतार हो, ताकामा-गाहारा का शासन करोगी.” इसके बाद जब इजानागि ने बाईं आँख धोई तो ‘त्सुकियोगि’ नामक देवता पैदा हुआ. यह चन्द्रमा का अवतार था. इसलिए इसने रात को प्रकाशित किया.

इजानागि द्वारा नाक की सफाई किए जाने से ‘सुसानोओ’ देवता का जन्म हुआ. उसे समुद्र का शासन यानी संसार का शासन सौंपा गया. लेकिन वह अपना कोई काम न कर लगातार बस रोता ही रहा. जब उसके पितृ-देव ने रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह यमलोक में अपनी माता से मिलना चाहता है. इजानागि ने उसे समझाया कि वह अंधकार और मृत्यु का देश है, इसलिए वहां जाना ठीक नहीं है. इस पर भी सुसानोओ ज़िद करता रहा. वह किसी भी हालत में यमलोक जाना चाहता था. उसके हठ पर इजानागि को गुस्सा आ गया और वह सुसानोओ से बोला, “तुम्हारे जैसे हठी का यहां कोई काम नहीं है. तुम यहां से चले जाओ. फिर कभी लौट कर मत आना.”

सुसानोओ रोते हुए वहां से चल पड़ा. वह अपनी माँ से मिलना चाहता था, लेकिन ऐसा करके वह पिता के पास नहीं लीट सकता था. यह सोचकर उसे बहुत दुःख हुआ. उसने तय किया कि वह अपनी बड़ी बहन आमातेरासु के पास जाएगा. वह आकाश की ओर चल पड़ा.

सुसानोओ बहुत बलशाली और वीर देवता था. ताकामाशाहारा के देवता उसे देखकर भयभीत हो गये. वे आशंका करने लगे कि कहीं वह आमातेरासु पर आक्रमण न कर दे. उन्होंने आमातेरासु के केश और वस्त्र बदलकर उसे पुरुष जैसा बना दिया तथा रत्नों से सजा दिया. सुसानोओ ने आकर अपनी बड़ी बहन को प्रणाम किया. आमातेरासु ने उससे पूछा कि वह आकाश पर क्यों आया है? उसने उत्तर दिया कि वह माँ से मिलने के लिए रो रहा था, इस पर पिता ने उसे निर्वासित कर दिया, इसलिए अब वह अपनी बहन के पास आया है.

महादेवी ने कहा, “तुम अन्य देवताओं को आश्वासन दो कि तुम्हारा मन साफ है, तभी यहां रह सकते हो.” सुसानोओ ने सबको आश्वासन दिया. उसने कहा कि अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए वह देवात्मा को बुलाकर बच्चों को जन्म देगा. महादेवी आमातेरासु और सुसानोओ आकाशगंगा के दोनों किनारों पर खड़े हो गए. महादेवी ने कहा, “मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, इसलिए कीमती तलवार मुझे दे दो.”

सुसानोओ ने अपनी प्राणप्रिय तलवार उसे दे दी.

महादेवी ने उस तलवार के तीन टुकड़े करके पवित्र जल से साफ किया और मुँह में डालकर खूब चबा-चबाकर फेंक दिया. उसके मुँह से सफेद धुआं निकला, जिसमें से तीन देवियां प्रकट हुईं.

अब सुसानोओ की बारी थी वह बोला, “बहन, अपने बाएँ केशों में सजा रत्न मुझे दे दो.”

महादेवी ने रत्न दे दिया. सुसानोओ ने उस रत्न को पवित्र जल से साफ किया और रगड़-रगड़ कर मधुर आवाज़ निकालने लगा. फिर उसने उस रत्न को मुँह में डालकर खूब चबाया और ज़ोर से फूँक मारी. चारों ओर साँस के कुहरे का सफेद धुआं फैल गया, जिसमें से पाँच देवता प्रकट हुए.

महादेवी ने सुसानोओ से कहा, “पहले उत्पन्न तीन देवियां तुम्हारी हैं और बाद में उत्पन्न पाँच देवता मेरे.”

सुसानोओ गर्व से बोला कि उसके मन में कोई कुविचार नहीं था, इसी से इतनी सुन्दर देवियों का जन्म हुआ है, इसलिए जीत उसकी हुई है. यह कहकर वह बहुत खुश हुआ. उसने बहुत शराब पी. नशा चढ़ जाने पर वह एक पागल घोड़े पर चढ़कर इधर-उधर दौड़ने लगा. उसने खेतों और फसलों को नष्ट कर दिया. पागल घोड़े ने लीद करके महादेवी की पूजा की वेदी को भी गन्दा कर दिया. इतने पर भी आमातेरासु नाराज़ नहीं हुई. उसने सोचा कि नशा उतर जाने पर सब ठीक हो जाएगा. किन्तु ऐसा नहीं हुआ सुसानोओ की हरकतें बढ़ती गईं.

महादेवी के पास एक हथकरघा था, जिस पर वह एक बुनकर औरत से कपड़ा बुनवाती थी, ताकि देवताओं को भेंट दे सके. सुसानोओ ने उस पवित्र हथकरघे पर घोड़े का शव डाल दिया. इससे बुनकर औरत भयभीत हो गई और काम छोड़कर भाग गई.

महादेवी आमातेरासु अपने भाई को प्रेम करती थी, इसलिए उसने उसके पापों को अपने कन्धों पर ले लिया. वह प्रायश्चित्त करने के लिए ‘आमानोइवाया’ नामक गुफा में जाकर तपस्या करने लगी. सूर्य की अवतार महादेवी के छिप जाने से सारा संसार अंधकार में डूब गया. राक्षस राक्षसिनियां ख़ुशी में शोर मचाने लगे. दूसरी ओर सारा संसार सर्दी से काँपने लगा और पेड़-पौधे सूखने लगे.

यह देखकर देवता चिन्ता में पड़ गए. वे सोचने लगे कि ऐसा ही रहा, तो सारा संसार नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा. इसलिए किसी तरकीब से महादेवी को गुफा से बाहर निकालना चाहिए. देवताओं ने एक सभा करके निश्चय किया कि एक आनन्द महोत्सव का आयोजन किया जाए. इससे निष्काम भाव से सबका कल्याण करनेवाली महादेवी प्रसन्न होगी. उन्होंने ज़ोर से बॉंग देनेवाले मुर्गे एकत्र किए. साथ ही, शिल्पकार को बुलाकर रत्न और शीशे बनवाए, ताकि रत्नों की रगड़ से तीव्र ध्वनि हो और शीशे के प्रकाश से चमक और उजाला छा जाए.

एक देवता पर्वत से एक पवित्र वृक्ष उखाड़ लाया, जिसकी चोटी पर रत्नों के गुच्छे बाँध दिए गए. उसके तने पर शीशे टांग दिए गए और जड़ों को सफेद कागज से निर्मित पवित्र झाड़न से सजा दिया गया. देवी-देवता महोत्सव स्थल पर एकत्र हो गए. यज्ञ की अग्नि जलने लगी. एक देवता मंत्रपाठ करने लगा. सबसे शक्तिशाली देवता ‘अमेनोताचिकाराओ नो कमि’ गुफा-द्वार के निकट छिपकर खड़ा हो गया.

तभी ढोल और बाँसुरी की आवाज सुनाई पड़ने लगी. एक नृत्यांगना उल्टी नाद से बने मंच पर नृत्य करने लगी. नृत्य करते-करते उसके वस्त्र एक-एक कर खुलकर गिरने लगे. उसके खुले अंग-प्रत्यंग देखकर देवता हँसने लगे. इस प्रकार वहां भारी कोलाहल होने लगा. गुफा के भीतर महादेवी ने भी इस कोलाहल को सुना.

जब कोलाहल बढ़ता ही गया तो महादेवी ने गुफा का द्वार थोड़ा-सा खोला और नृत्यांगना से पूछा, “मेरे गुफा के भीतर छिप जाने से आकाश-पाताल अंधकार में डूब गए होंगे, फिर भी यह आनन्दभरा कोलाहल क्यों हो रहा है?”

नृत्यांगना ने उत्तर दिया, “महादेवी! आपसे भी अधिक तेजस्वी एक देवी का आगमन हुआ है, इसी कारण सारे देवता आनन्द मना रहे हैं. आप स्वयं उस देवी को देख लीजिए.”

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जापान की कथाएँ का प्रकाशन साहित्य अकादमी ने किया है.

महादेवी के मन में उस देवी को देखने की इच्छा पैदा हुई. देवताओं ने पवित्र वृक्ष पर लटके शीशे को महादेवी के सामने कर दिया. शीशे में अपना तेजस्वी प्रतिबिम्ब देखकर महादेवी ने समझा कि यह कोई दूसरी पवित्र देवी है. गुफा के भीतर से सूर्य की किरणें और ताप बाहर आ रहा था. इससे चारों ओर चकाचौंध फैल गई. एकाएक गुफा-द्वार के निकट छिपे शक्तिशाली देवता ने हाथ पकड़कर महादेवी को बाहर खींच लिया. गुफा के द्वार पर रस्सी बाँध दी गई थी, ताकि महादेवी फिर अंदर न चली जाए. इस प्रकार जापान देश के साथ सम्पूर्ण जड़-चेतन संसार प्रकाशमान हो उठा.

इसके बाद देवताओं ने एक सभा करके विचार किया कि महापापी सुसानोओ को उसके पापों का दण्ड दिया जाना चाहिए. तय किया गया कि उसकी दाढ़ी-मूंछ और हाथ-पैरों के नाखून काटकर देवलोक से निर्वासित कर दिया जाए.

सुसानोओ ने कई पाप किए थे. एक दिन भूख लगने पर उसने एक देवी से भोजन माँगा.

‘देवी ने अपने मुख, नाक और नितम्ब से खाद्य पदार्थ निकालकर स्वादिष्ट भोजन तैयार किया. सुसानोओ यह सब देख रहा था.

जब देवी भोजन लेकर उसके सामने पहुंची तो वह क्रोधित हो गया, बोला “तुम मुझे इतना गंदा भोजन क्यों खिला रही हो?”

इससे पहले कि वह कुछ उत्तर देती, सुसानोओं ने उसे मार डाला. मृत देवी के सिर से रेशम के कीड़े, आँखों से धान और तरह-तरह की फसलें पैदा हुईं. असीम कृपावाली अन्न की देवी के मर जाने पर सभी मानव खेती करने को विवश हो गए.

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Sanskar Ujala
Author: Sanskar Ujala

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